नेशनल हाईवे चिचोला के पास ड्राइवरों का आंदोलन : छत्तीसगढ़

NH चिचोला के पास ड्राइवर संगठन का आंदोलन

नेशनल हाईवे से लगे ग्राम रानीतालाब के पास ड्राइवर संगठन छत्तीसगढ़ द्वारा अपनी मांगो को लेकर आंदोलन किया जा रहा है जिसमें ड्राइवर संगठन द्वारा शराब बंदी, ड्राइवरो को पेंशन, ड्राइवरों को विशेष रियायत युक्त स्वास्थ्य लाभ, ड्राइवरों के बच्चों को नौकरी में 10% आरक्षण, ड्राइवरों को सरकार द्वारा ₹20 लाख दुर्घटना बीमा, ड्राइवर वेलफेयर बोर्ड इत्यादि मांगो को लेकर आंदोलन किया जा रहा है जिसके सन्दर्भ में Chhuriya Times द्वारा जानकारी लिया गया। इनकी मांगे कहाँ तक न्यायोचित एवं तर्कसंगत है इसका निर्धारण सरकार करेगी, क्या यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है यह भी एक बड़ा प्रश्न हो सकता है, क्योंकि आंदोलन में ही कुछ लोग शराब का सेवन किए हुए थे और दूसरी ओर शासन से शराब बंदी की मांग कर रहे थे।

मांगें, तर्क और सामाजिक–राजनीतिक विश्लेषण

नेशनल हाईवे चिचोला से लगे ग्राम रानीतलाब, थाना चिचोला के पास हाल ही में छत्तीसगढ़ ड्राइवर संगठन द्वारा अपने हक़ और अधिकारों को लेकर एक आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन ने स्थानीय प्रशासन और समाज का ध्यान अपनी ओर खींचा है। ड्राइवर संगठन ने जो मांगे रखी हैं, वे न केवल उनके जीवन से जुड़ी हैं बल्कि सामाजिक न्याय, श्रम कल्याण और नीतिगत सुधार से भी संबंधित हैं।

संगठन की प्रमुख मांगों में शामिल हैं — ड्राइवर वेलफेयर बोर्ड, राज्य में शराबबंदी, ड्राइवरों को पेंशन की सुविधा, उन्हें विशेष रियायती स्वास्थ्य लाभ, उनके बच्चों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण, ₹20 लाख दुर्घटना बीमा और ड्राइवर वेलफेयर बोर्ड की स्थापना। इन मांगों के समर्थन में स्थानीय स्तर पर काफी संख्या में ड्राइवर एकत्र हुए। Chhuriya Times की टीम ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया और लोगों से बात की।



आंदोलन की पृष्ठभूमि

भारत में परिवहन व्यवस्था की रीढ़ ड्राइवर ही हैं। देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा ट्रक, बस और छोटे मालवाहक वाहनों पर निर्भर है। फिर भी, सड़क पर जीवन बिताने वाले इन लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा और सरकारी योजनाओं की पहुंच बहुत सीमित है। दुर्घटनाओं, थकान, स्वास्थ्य जोखिम और पारिवारिक असुरक्षा इनके जीवन का हिस्सा बन गए हैं। इसी पृष्ठभूमि में यह आंदोलन एक ‘वर्ग आवाज़’ के रूप में सामने आया है।

ड्राइवर संगठन का कहना है कि जब सरकारें हर वर्ग के लिए अलग-अलग योजनाएँ चला रही हैं — जैसे किसानों के लिए ऋण माफी, मजदूरों के लिए श्रमिक कल्याण बोर्ड — तो ड्राइवरों के लिए भी एक ड्राइवर वेलफेयर बोर्ड की स्थापना होनी चाहिए जो उनकी सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधा और दुर्घटना बीमा जैसी जरूरतों को पूरा करे।

आंदोलन के दौरान उठे सवाल

हालाँकि, आंदोलन के दौरान कुछ ऐसे दृश्य भी सामने आए जिन्होंने सवाल खड़े कर दिए। कुछ प्रदर्शनकारी शराब के प्रभाव में नज़र आए, जबकि उनकी प्रमुख मांगों में से एक राज्य में शराबबंदी लागू करना थी। यह विरोधाभास निश्चित रूप से आंदोलन की गंभीरता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कई बार ऐसे आंदोलन वास्तविक मांगों से प्रेरित होने के बावजूद राजनीतिक दलों के लिए अवसर बन जाते हैं। ड्राइवर संगठन के आंदोलन में भी यही सवाल उठ रहा है — क्या यह आंदोलन पूरी तरह सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित है या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति भी है?

शराबबंदी की मांग: वास्तविकता और व्यावहारिकता

छत्तीसगढ़ में शराबबंदी लंबे समय से बहस का विषय रही है। महिलाओं के संगठन, समाजसेवी और कई राजनीतिक दल समय-समय पर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। ड्राइवर संगठन द्वारा शराबबंदी की मांग समाजिक दृष्टि से उचित कही जा सकती है, क्योंकि सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में नशे की स्थिति में वाहन चलाना भी शामिल है।

लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो पूर्ण शराबबंदी लागू करना आसान नहीं है। यह न केवल सरकारी राजस्व को प्रभावित करेगा बल्कि अवैध शराब कारोबार को भी बढ़ावा दे सकता है। इसलिए इस मांग को सामाजिक स्वास्थ्य और राजस्व संतुलन के बीच की एक कठिन नीति चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए।

ड्राइवरों के लिए पेंशन और बीमा

ड्राइवरों की सबसे बड़ी समस्या है उनकी असंगठित रोजगार स्थिति। न तो वे सरकारी कर्मचारी हैं, न ही किसी स्थायी निजी संस्था के अधीन। ऐसे में पेंशन या सामाजिक सुरक्षा का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता।

अगर सरकार ड्राइवरों के लिए एक विशेष पेंशन योजना या ड्राइवर वेलफेयर फंड बनाती है, तो यह इस वर्ग के लिए बड़ी राहत होगी। इसी प्रकार, ₹20 लाख दुर्घटना बीमा की मांग भी न्यायोचित है, क्योंकि सड़क दुर्घटनाओं में ट्रक और बस ड्राइवरों की मृत्यु दर काफी अधिक है।

हालाँकि, यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि भारत में पहले से ही प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, आयुष्मान भारत योजना जैसी कई योजनाएँ मौजूद हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इन योजनाओं की पहुंच ड्राइवरों तक सही तरीके से हो रही है? शायद नहीं — और यही इस आंदोलन की मूल पीड़ा है।

स्वास्थ्य कार्ड की मांग और मौजूदा योजनाएँ

ड्राइवर संगठन का कहना है कि उन्हें अलग से हेल्थ कार्ड दिया जाए, जिससे वे किसी भी दुर्घटना या बीमारी की स्थिति में अस्पतालों में तत्काल सुविधा प्राप्त कर सकें।
लेकिन केंद्र सरकार पहले ही आयुष्मान भारत योजना चला रही है, जिसके तहत प्रत्येक परिवार को ₹5 लाख तक का मुफ्त इलाज मिल सकता है। यदि राज्य और प्रशासनिक स्तर पर जागरूकता और पंजीकरण की प्रक्रिया प्रभावी बनाई जाए, तो शायद अलग हेल्थ कार्ड की जरूरत ही न पड़े।

यहाँ समस्या नीतियों की कमी नहीं, बल्कि कार्यान्वयन की कमजोरी है। ग्रामीण इलाकों में कई ड्राइवरों को यह तक नहीं पता कि वे आयुष्मान योजना के लाभार्थी हैं। यह सरकारी तंत्र और सामाजिक जागरूकता दोनों की कमी को उजागर करता है।

आरक्षण की मांग और संवैधानिक जटिलता

ड्राइवर संगठन की एक मांग है कि उनके बच्चों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। यह मांग पहली नज़र में सहानुभूति उत्पन्न करती है, लेकिन संवैधानिक दृष्टि से यह जटिल है।

भारत का संविधान सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण देता है, न कि पेशेवर समूहों को। सुप्रीम कोर्ट ने कुल आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत तय की है। ऐसे में किसी नए वर्ग के लिए अतिरिक्त 10 प्रतिशत आरक्षण देना न्यायिक रूप से चुनौतीपूर्ण होगा।

इसलिए इस मांग का हल शायद आरक्षण से नहीं, बल्कि कौशल विकास, शिक्षा में प्राथमिकता और रोजगार प्रशिक्षण जैसी योजनाओं से निकाला जा सकता है।

राजनीति की भूमिका

कई बार सामाजिक आंदोलनों का राजनीतिकरण उन्हें कमजोर कर देता है। आंदोलन की मांगें चाहे जितनी भी उचित हों, अगर उनमें राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ जाता है, तो मुख्य उद्देश्य धुंधला पड़ जाता है।
चिचोला में हुए इस आंदोलन में भी कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह किसी राजनीतिक दिशा से प्रेरित था। हालांकि संगठन ने इसे नकारा है, परंतु प्रदर्शन में कुछ असंगठित व्यवहारों ने विरोधियों को यह कहने का अवसर जरूर दिया कि आंदोलन को दिशा देने में राजनीतिक इच्छाएँ काम कर रही हैं।

सरकार की संभावित प्रतिक्रिया

छत्तीसगढ़ सरकार को अब इस आंदोलन की मांगों पर ठोस रुख अपनाना होगा। कुछ मांगें व्यावहारिक और कल्याणकारी हैं, जैसे ड्राइवर वेलफेयर बोर्ड या दुर्घटना बीमा योजना, जिन्हें लागू किया जा सकता है।
जबकि शराबबंदी और आरक्षण जैसी मांगें लंबी नीति और संवैधानिक चर्चा की मांग करती हैं।

सरकार चाहे तो ड्राइवरों के लिए एक राज्य स्तरीय परामर्श समिति बना सकती है, जिसमें परिवहन विभाग, सामाजिक न्याय विभाग और ड्राइवर प्रतिनिधि शामिल हों। यह समिति नियमित रूप से ड्राइवरों की समस्याओं और नीतिगत समाधान पर काम करे — यह आंदोलन का एक रचनात्मक परिणाम हो सकता है।

सामाजिक दृष्टि से आंदोलन का महत्व

यह आंदोलन केवल ड्राइवरों की बात नहीं कर रहा, बल्कि असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों की आवाज़ को भी सामने ला रहा है। भारत की बड़ी आबादी इसी असंगठित वर्ग में काम करती है — जिनके पास न बीमा है, न पेंशन, न स्थिर रोजगार।
ड्राइवर संगठन का आंदोलन इस बात का प्रतीक है कि अब यह वर्ग भी अपनी एकजुटता और अधिकारों को लेकर सजग हो चुका है।

मीडिया की भूमिका

स्थानीय मीडिया, विशेष रूप से Chhuriya Times जैसी संस्थाएँ, इन आवाज़ों को मुख्यधारा तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जब छोटे स्तर की खबरें समाज में चर्चा का विषय बनती हैं, तब शासन को भी जनता की वास्तविक समस्याएँ समझने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष

ड्राइवर संगठन छत्तीसगढ़ का यह आंदोलन एक दर्पण है, जो यह दिखाता है कि देश की आर्थिक रफ्तार के पीछे जो हाथ हैं — वे खुद कितनी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। उनकी मांगों में भावनाएँ हैं, तर्क हैं, और कुछ सीमाएँ भी हैं।

यह कहना कठिन है कि उनकी हर मांग व्यावहारिक है या नहीं, लेकिन यह निश्चित है कि उनकी आवाज़ नीतिगत चर्चा के योग्य है।
सरकार, समाज और मीडिया — तीनों को इस अवसर को संवाद का रूप देना चाहिए, न कि टकराव का।

छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले दिनों में क्या निर्णय लेती है, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन यह आंदोलन एक बात तो साफ़ कर गया — अब देश के ड्राइवर भी केवल पहिया नहीं, बल्कि नीति निर्माण की दिशा तय करने वाली ताकत बन रहे हैं।

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